दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, July 8, 2007

एक कुंवारा जग का मारा


पापा से ज़्यादा उन्हें मम्मी की याद आती थी. मम्मी! देखो ये सब्जीवाला डांट रहा है. मम्मी! देखो पैर में पॉटी लग गयी. मम्मी! तौलिया दे दो... सुन-सुनकर मम्मी आजिज़ आ गयी थीं. उनको तो हर चीज़ के लिये मम्मी का सहारा चाहिये था. पहली बार जब कॉलेज में राहुल ने उन्हें सिगरेट पिलाई तो घर लौटकर मम्मी से बोले- मम्मी सिगरेट से धुआं निकलता है, मेरे पेट में भी राहुल ने धुआं उंडेल दिया, कुल्ला कर लूं. मम्मी को समझ में आ गया था कि लडके की शादी कर देनी चाहिये. उन्हें लडकियों से बहुत शर्म आती थी और राहुल गंदी-गंदी बातें करता था. अब तो कॉलेज छोडे हुए तीस साल हो गये लेकिन मम्मी का दामन तीस सेकेंड को भी नहीं छूटा. आखिरी बार जब श्वेता ने मैकडॉनल्ड चलने को कहा तो मम्मी ने अपना बटुआ डाइनिंग टेबल पर छोड रखा था कि वो ले लेंगे जितने भी पैसे चाहिये. लेकिन आवाज़ आई मम्मी! श्वेता को कितनेवाला पिज़्ज़ा खिलाऊं! मम्मी ने टीवी का वॉल्यूम ऊंचा कर दिया था.
आज उन्हें हर लडकी पिज़्ज़ा खानेवाली लगती है और सबसे उन्होंने किनारा कर लिया है, जब पिज़्ज़ा कॉर्नर पर ही खडा रहना है तो पिज़्ज़ा का बिज़नेस न कर लिया जाये? उन्होंने यह एक रात अधनींद में सोचा था लेकिन उसी सुबह उन्हें अपनी चड्ढी कुछ गीली लगी थी. आजकल एक लैपटॉप पर बैठे अक्सर वो शाही शफ़ाख़ाना की साइट पर होते हैं मम्मी भी कभी उनके कमरे में नहीं जातीं. शांताबाई ने एक दिन बताया था- "कम्पूटर पर भैया जी गंदी-गंदी फ़ोटो देखते हैं."
अब तो एसी की ठंडी हवा से उनका रंग पीला पड गया है और राहुल का फोन वो अटेंड नहीं करते.

1 comment:

Rising Rahul said...

मेरे एक दोस्त मिस्टर एन हैं। मम्मी के परम भक्त। हाई कोर्ट मे वक़ालत करते थे लेकिन मम्मी से ज्यादा दिन दूर नही रह पाए। हाई कोर्ट त्यागकर अब अयोध्या आ गए हैं । और मम्मी भी उनकी अजीब हैं। सवेरे से शुरू हो जाती हैं कि बेटा सवेरा हो गया है , अब उठ जाओ। फिर बेटा बाथरूम हो आओ । अब बेटा नाश्ता कर लो। आजकल लोअर कोर्ट मे मिस्टर एन ने वक़ालत शुरू की है। सवेरे निकलते समय भी मम्मी " बेटा शाम को सीधे घर आना" ।
अब हकीकत क्या है। मिस्टर एन जब भी दोस्तो के साथ बैठते हैं , यार दोस्त उन्हें मिस्टर मम्मी के नाम से बुलाते हैं। शाम को श्रीमान जी घर जाते हैं। रात वाला इण्टरनेट ले रखा है। तो रात मे वही शुरू हो जाता है जो आपने बताया । मिस्टर एन की एक बात मुझे काफी कन्विंस करती है। उनका कहना है कि वे रोज़ सवेरे नियम से हस्तमैथुन करते हैं। इस बार जब मैं उनसे मिला तो उन्होने बताया कि इस बार डाक्टर ने भी उनकी इस आदत को सराहा।(मिस्टर एन अक्सर बीमार रहते हैं , उन्हें हमेशा के लिए होने वाला पीलिया हो चुका है ) उनके साथ रहने वाले एक दोस्त से मैंने पूछा , अब मिस्टर मम्मी के कैसे मिजाज़ हैं । उसने बताया कि अभी भी वो मम्मी के हाथ से चम्मच से दवाई पीते हैं। एक दिन उनका फोन आया , आवाज़ जोश से भरी हुई थी। कहने लगे , आज आखिरकार सालों से बचा के रखा हुआ उनका शील भंग हो गया। मुझे सिर्फ एक चीज़ याद आई। उनका चम्मच से दवाई पीना और बार बार कहना "मम्मी " ।
ये सिर्फ मिस्टर एन या राहुल के दोस्त की कहानी नही है। होश सँभालने की शुरुआत से लेकर जवानी तक हमारे मध्यम वर्ग (खासकर निम्न मध्यम वर्ग मे ) मे मम्मी पापा और बच्चो के बीच अक्सर इस तरह की मानसिकता देखी जा सकती है। खासकर छोटे शहरों मे तो और ज्यादा।