दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Sunday, August 19, 2007

गोभी का "फूल" है तो कोट में क्यों न लगाया?


विनोद कुमार शुक्ल जितने अनोखे रचनाकार हैं, उतने दिलचस्प उनके दोस्त हैं.
उन दिनों मैं दीवार में एक खिड़की रहती थी(जिसे कोई ले गया और फिर लौट के ना आया) दोबारा पढ़ रहा था. मुझे ताज्जुब है कि विनोदजी या कहें उनकी तरह की रचनाशीलता के एप्रेसिएशन टूल्स आसानी से क्यों उपलब्ध नहीं हैं. ख़ैर उनके पुराने दोस्त और कवि-चिंतक नरेश सक्सेना से उन्हीं दिनों मुलाक़ात हुई तो मैंने विनोदजी के बारे में पूछ ही लिया. कोई छ: साल पुरानी वो रिकॊर्डिंग आज पूरा दिन छानने के बाद हाथ आ ही गई. जल्दी से दो छोटे-छोटे हिस्से आप तक पहुंचा रहा हूं.















2 comments:

Sanjeet Tripathi said...

सारगर्भित है बातचीत! शुक्रिया!!

अभय तिवारी said...

अच्छा लगा नरेश जी की विवेचना को सुनना.. वे मानते हैं कि विनोद जी की कविता लोगों के लिए चौंकाने वाली रही है.. जबकि अशोक वाजपेयी ने लिखा कि उनकी कविता विचलित करने वाली है चौंकाने वाली नहीं.. मुझे ये बात अधिक सही लगी..