दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Tuesday, May 27, 2008

सुनिये कुबेर दत्त की दो कविताएं


दूरदर्शन के कुछ चुनिंदा प्रोड्यूसरों में अपनी मौलिक सूझबूझ, लेखन और गंभीर आवाज़ की वजह से कुबेर दत्त अलग से पहचाने जाते हैं. टेलीविज़न पर कई कार्यक्रमों की देसी आवश्यकताओं के अनुरूप प्रस्तुति ने उन्हें लोकप्रियता की ऊँचाइयों पर रखा है. आप और हम, जन अदालत, पत्रिका, फलक और कई विशेष आयोजनों में उन्होंने समय और उसके प्रश्नों को हमेशा ध्यान में रखा. कवि, कथाकार, पटकथा लेखक, फ़िल्मकार और अब चित्रकार कुबेर दत्त इन दिनों दूरदर्शन के मंडी हाउस में चीफ़ प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत हैं. पेश है कोई आठ साल पहले उनके घर पर रिकॉर्ड की हुई उनकी दो कविताएं "एशिया के नाम" और "समय जुलाहा" उनके ही स्वर में.

एशिया के नाम समय जुलाहा

5 comments:

Uday Prakash said...

अपने अकेलेपन में शब्दों, छवियों, रंगों से किसी फ़कीर की तरह् खेलता.रात-विरात वीरान दिल्ली में दोस्तों को टेरता यह् शख्स आज के वक्त का अजूबा है. इतनी प्रभावशाली कविता के लिये बधाई.

sanjay patel said...

आपने बरसों बाद उस शख़्स से मुलाक़ात करवा दी जो ज़हन से उतरा ही नहीं दूरदर्शन के स्वर्णिम काल में कुबेर जी को बहुत इत्मीनान से पत्रों के जवाब देते देखना/सुनना एक रोमांच होता था मेरे लिये.मुक्ता श्रीवास्तव और उनकी जुगलबंदी से ये पत्रावली बहुत ही रोचक बन जाया करती है.हालाँकि कवि (सच्चा कवि)कभी इस बात की परवाह नहीं करता कि उसका लिखा कहाँ तक पहुँचा लेकिन फ़िर भी मैं कुबेरजी को कविता का एक ऐसा ’अनसंग हीरो’ मानता हूँ जिनके साथ वक़्त ने इंसाफ़ नहीं क्या...मज़ा आ गया इस पोस्ट को पीकर.

दीपक said...

कविता बहूत अच्छी लगी साथ साथ विजिवल साउंड मजेदार था

editor said...

Umda. Bohat Khuub.

jagmohan said...

काफी वर्पों तक आप लोगों के साथ रहने के बाद...आज कुछ इस कदर मुझे उस रहा पर छोड़ा गया...जिसका मैं कभी भी साथी नहीं था...मैने जीवन के एक बड़े फलक को आप लोगों के साथ ही स्थापित किया...लेकिन आज तक यह नहीं समझ पाया हूं...कि आख़िर इस विखराव का मकसद क्या है? या क्या था...कोशिश निरंतर जारी है...लेकिन फिर भी दूर खडा हूं...बहुत दूर जहां से मुझे सिर्फ और सिर्फ आप लोगों की कविता की एक लय मात्र सुनायी देती है...आख़िर यह आवाज़ कब मेरे कानों तक आएगी...मेरे मित्रा....जगमोहन आज़ाद