दुनिया एक संसार है, और जब तक दुख है तब तक तकलीफ़ है।

Saturday, January 18, 2014

झाड़ियां -2

परवाह नहीं
कि कोई हंसेगा
जो मैंने ये कहा कि
झाड़ियां मेरे लिए आत्मीय हैं
और जंगल  का स्मरण
 झाड़ियों ही को सबसे पहले
मेरे नज़दीक सरका देता है

पगडंडियों से गुज़रते हुए
की बार मैंने सांस लेते
सूना है इन कम्बल में दुबके
लोगों को

इनसे बातें भी की हैं

और जब कभी पगडंडियों
पर बहुत जल्दी होती है
और दौड़ने की कोशिश करता हूं
तो क़मीज़ का दामन
फांस लेती हैं  झाड़ियां
एक दिन जब मैंने
जल्दी में दामन छुड़ाने के लिये हाथ बढाया
तो एक कांटा
लहूलुहान कर गया.

(ट्रेन, पटना से कानपुर २८ फ़रवरी 1991)

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